Tuesday, March 10, 2020

स्वामी श्री त्र्यंबकेश्वर चैतन्य जी महाराज की संस्कृत काव्य रचना



स्वामी श्री त्र्यम्बकेश्वरचैतन्यजी महाराज द्वारा विरचित इस पुस्तक का मैंने अध्ययन किया।
यह पुस्तक साहित्य और व्याकरण के छात्रों के लिए शोध की दृष्टि से बड़ी महत्वपूर्ण है ।
साहित्य में समीक्षात्मक अध्ययन और व्याकरण में व्याकरण शास्त्रीय अध्ययन, शोध छात्रों के लिए बड़ा ही रोचक एवं शास्त्रीय समाज हित में उपयुक्त रहेगा। इस पुस्तक में साहित्य शास्त्र की दृष्टि से यदि देखें तो अभिवंदनापरक यह काव्य है और पुराणगत तथ्य , शास्त्रगत तथ्य, धर्म गत तथ्य इसके स्तोत्रों में प्राप्त होते हैं ।
 अनेक प्रकार के छंद, रस, अलंकारों से परिपूर्ण यह ग्रंथ है ।
अतः लघुकाय (३९ पंचक - १९५ श्लोक) होता हुआ भी यह ग्रंथ विद्वता के मामले में और कार्य करने की दृष्टि से शोध करने वालों के लिए बड़ा ही उपयोगी सुगम्य एवं नूतनतापन्न रहेगा।
 इसी तरह यदि व्याकरण शास्त्र का विद्यार्थी इस पर शोध करता है तो समस्त पद, कारक विवेचन , तिगंत चर्चा आदि की दृष्टि से यह काव्य विशिष्ट स्थान रखता है मेरे ख्याल से समस्त पदों की विवेचना करने के द्वारा शोधार्थी इसमें बहुत आगे बढ़ सकता है । इस ग्रंथ के अतिरिक्त महाराज श्री के और भी अनेक पंचक संकलन काव्य है जो कि अपने अपने विशिष्ट अर्थों में विद्वत्ता एवं कविताओं से परिपूर्ण हैं , जैसे - प्रार्थनापीयूषम् चिंतनपीयूषम् इत्यादि। 

एवं महाराज श्री के बारे में तो यही बात है कि जितना ऊंचा व्यक्तित्व, उतना ही सरल स्वभाव ।
अखिल भारतीय धर्मसंघ के सर्वे-सर्वा,
 एवं अखिलभारतीय राम-राज्य-परिषद् के अध्यक्ष ।
अनेकों गुरुकुलों, पाठशालाओ, विद्यालयों के संरक्षक, प्रेरक , उद्घाटक, संस्थापक इत्यादि के रूप में जाने जाते हैं ।
सभी पुराणों, शास्त्रों की कथाएं करते हैं ।
एवं भादरा धर्मसंघ विद्यालय के पूर्व प्रधानाचार्य भी रह चुके हैं ।
स्वामीश्री करपात्री जी महाराज, श्री प्रबलजी महाराज की परंपरा के अधुनातन सर्वोच्च पद-प्रतिष्ठित उद्वाहक, इत्यादि इत्यादि।

अतः जिस किसी भी शोधार्थी को अपना नया विषय चुनना हो , वह एक बार इस ग्रंथ को देख सकता है और अपना शोध प्रारूप निर्माण कराने में मेरी निशुल्क , निस्वार्थ सहायता भी प्राप्त कर सकता है। 
इस  शोध-प्रबंध को निर्विघ्न, निर्भ्रान्त रूप से पूरा कराने की पूर्ण गारंटी के साथ धन्यवाद।

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