Sunday, March 15, 2020

कोरोना-वायरस (हिन्दी भावार्थ सहित)


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जग्ध्वा कुतैलपतिता अपि शष्कुली: ये
मिष्टांश्च कुण्डलसमानपि वा कदन्नान्
यान्तीव नाल्पमपि मूर्धरुजं जना: ये
तान् किं करिष्यति भुवीह स वै 'करोना'।।१।।

बेकार तेल में बनी हुई कचौड़ियां खाकर  भी,  सड़े हुए मैदा से बनी हुई जलेबियां खा कर भी , जिनको सिरदर्द तक भी नहीं होता उनका यह "कोरोना" क्या करेगा!

पङ्केषु होलिसमयेषु मुहु: पतन्ति
आलिङ्गयन्ति च समानविलोक्य जातिं
हर्षन्ति भूरि दिवसेषु हरिं स्मरन्ति
तेषां न बालमपि बङ्कयतात्* 'करोना'।।२।।

होली के समय में जो कीचड़ में लोटते हैं और हर किसी के गले मिलते हैं , खूब मौज मनाते हैं और भगवान् के गुण गाते हैं , उनका यह कोरोना वायरस बाल भी बांका नहीं कर सकता।

ये निर्दयाश्च हतकाश्च विधर्मिणश्च
म्लेच्छा अधर्मनिरता: पशुतोऽधमाश्च
भक्षन्ति सर्वमपि नैव विलोक्य किञ्चित्
तान् मारयेदयमहो विषयुक् करोना।।३।।

जो अधर्मी लोग अत्यंत निर्दय हैं , म्लेच्छता
पूर्ण आचरण करते हैं , नीच हैं , पशुओं से भी ज्यादा गिरे हुए हैं (क्योंकि सब कुछ खा लेते हैं ) तो भैया,  ऐसे लोगों को ही मारने के लिए यह विषाणु कोरोना वायरस आया है।

भक्षन्ति कर्कमकरान् बत वृश्चिकांश्च
कीटान् भुजङ्गमपतङ्गमकान् मतङ्गान्
काकान्कपोतविहगांश्च शुकान्मयूरान्
तान्नाशयेद् द्रुतमसौ विषयुक्करोना।।४।।

सांप केकड़ा बिच्छू कीट पतंगे मगरमच्छ हाथी कौवा कबूतर तोते मोर और अनेक प्रकार के जीव जंतुओं को जो बेरहमी से मारकर खा जाते हैं ऐसे दुष्टों को मारने के लिए ही है विषाणु कोरोना नामक वायरस पैदा हुआ है।

ये माहिषाजखगकौक्कुटमांसभक्षा:
ये  गोविडालहनना अथवा श्वपाका:
ये सर्वजन्तुपचना रचना: विधातु:
तान्मारयेद् ध्रुवमसौ विषभृत् "करोना"।।५।।

बिल्ली , कुत्ता, गाय , भैंस,  बकरा , मुर्गा , पशु पक्षी ऐसे सभी जीव-जंतुओं को जो पका कर खा जाते हैं , जो कि भगवान की रचना हैं , उनको निश्चय ही यह करोना नामक वायरस मार डालता है।

को वा करिष्यति भुवीह च तत्सुरक्षा:
क: क्रूरतां च शमयेदथ राक्षसानां
इत्थं विचार्य विभुना प्रकृतिप्रियेण
मांसादरोगसरणो जनित: "करोना"।।६।।

अरे भाई इन जीव जंतु की सुरक्षा कौन करेगा ? इन राक्षसों की क्रूरता को कौन नष्ट करेगा ? - ऐसा सोच कर के प्रकृति के प्रेमी भगवान ने ही यह मांसाहारिओं के लिए कोरोना नामक वायरस बनाया है- ऐसा मेरा विचार है।

हे श्रीशिव त्वमिह नैव विराममीया:
हन्तु द्रुतं कुमनसो ह्यपि दुष्टलोकान्
कारुण्यमूर्तिरिव ते पशुरक्षणार्थं
जातोधुना क्रमित एष जयेत् "करोना"।।७।।

हे भगवान् ! मैं तो कहता हूं इन दुष्टों को कोरोना वायरस से मार डालो !!
 आप करुणा की मूर्ति हैं और यह कोरोना-वायरस है (ऐसा लगता है जीवो पर दया करने के लिए आपने ही इसको पैदा किया है।)!

दैत्यान् ह मानवशरीरधरांश्च तांश्च 
दण्डस्वरूप इह चावगतो विषाणु:
हे सत्यधर्मपथिका:! विचलन्तु नैवं
भूयान्न वाऽहितकरो भवतां "करोना"।।८।।

मानवरूपी राक्षसों (बिना विचार की सभी जीवो को खाना वस्तुतः राक्षसपना ही है) 
के लिए ही यह कोरोनावायरस दंड की तरह आया है - ऐसा तुम समझ जाओ ! लेकिन अरे शाकाहारियों ! सत्य धर्म का पालन करने वालों ! आप जरा भी मत डरो ! आपके लिए यह कोरोना नामक वायरस कुछ भी अहितकर नहीं है।

हस्तेन मेलनपरोपि जनोन्यहस्ते
एषाभिवादनपरा प्रथिता समस्ते
लोके विषाणुभयतो न चरेन्, नमस्ते
सत्संस्कृतेरिह सुमार्ग इवास्ति यस्ते।।९।।


पहले जो (भारत को छोड़कर) समस्त लोक में हाथ मिलाने की अभिवादन की प्रथा थी, वह भी इस कोरोना विषाणु के डर से नहीं की जा रही, अपितु भारतीय पद्धति से नमस्ते किया जा रहा है, ये ही तुम्हारे लिए सुसंस्कृति का अच्छा रास्ता है, (इसे सदा के लिए अपनाएं) ।

संस्पर्शदोषजनितोयमवोचि रोग:
मन्वादिधर्मशरणैरपि तद्विचार:
कृत्त्वा सुखाश्रितजगज्जनता प्रकल्पा
दत्ता, विहाय पुरुषा समयन्ति कष्टम्।।१०।।

यह "कोरोना" नामक रोग स्पर्श से भी फैलता है ! क्या चीज स्पर्श करनी है और क्या चीज स्पर्श नहीं करनी - इस तथ्य का मनुस्मृति आदि धर्मग्रंथों में बड़ा विचार है ।

और यह जो विचार है , यह सारे संसार की जनता को स्वस्थ और सुखी बनाने के लिए ही किया गया था । लेकिन आज स्पर्शदोष न मानने के कारण ही लोगों में रोगाणु वायरस आदि कष्ट फैल रहे हैं।

*बङ्कयतात् - वकि गतौ इति धातो: वङ्क इत्यचि, तस्य वङ्क इवाचरतीत्यर्थे, लोटि, वङ्कयतात् वबयोरभेदे बङ्कयतादिति। ननु वकि धातोर्गत्यर्थकत्त्वात्कथं बालं न बङ्कयतादिति ? अपास्ते- करोनाविषाणु: जनस्य बालमपि केशमपि न प्राप्तुं शक्नोति , किं तस्य शरीरमित्यर्थ: । अर्थात् अस्मादृशां बालमपि प्राप्तुं करोना न शक्त:।
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©हिमांशुर्गौडो
लेखनकालो दिनाङ्कश्च - ०९:०० रात्रौ, १५/०३/२०२०, गाजियाबादस्थगृहे।

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