Tuesday, March 10, 2020

"डरना जरूरी है" फिल्म और संस्कृत व्याकरण - डॉ हिमांशु गौड़

इस लेख को वे लोग ज्यादा समझ पाएंगे जिन्हें  संस्कृत-व्याकरण की थोड़ी बहुत जानकारी हो, और बॉलीवुड फिल्मों की भी -
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सिद्धांतकौमुदी के कृदंत में एक प्रकरण आता है , जहां पर ऐसे शब्दों के लिए खश् प्रत्यय होता है जो आत्ममानी अर्थ में हों । (आत्ममाने: खश्च) जैसे - भुवम् आत्मानं मन्यते इति भुवम्मन्य:! कालीमात्मानं मन्यते इति कालीम्मन्य:!
मतलब यहां खश् प्रत्यय के साथ-साथ मुम् का भी आगम होता है , तब ये शब्द बनते हैं। जो खुद को भूमि मानता हो, कि "मैं भूमि हूं" ऐसी भावना करता हो,
 जो खुद को काली मानता हो ,
वह कालीम्मन्य है।
 ऐसा प्रयोग जब मैंने देखा तो मुझे लगा कर आचार्य ने शायद ऐसे लोग देखे होंगे जो स्वयं को पृथ्वी से आत्मसात्कृत मानते हों।

 और ऐसे लोग तो हम लोगों ने भी देखे ही हैं जो खुद को काली मानते हों
या ऐसा मानते हो कि मुझ पर काली आती है ।
तो अधिकतम लोग घटनाओं को देखकर शास्त्रों में भी प्रयोग करते आएं हैं ।
शास्त्र और लोक का यही संबंध , नियम के रूप में आता है ।
इनका एक गण निश्चित कर दिया है के इस गण के शब्दों को ही खश् और मुम् का आगम होगा।
 तो मेरे ख्याल से तत्तद् आचार्यों ने लोक में प्रयोग होने वाले ऐसे शब्दों की सूची बनाई होगी ,
और शास्त्र में भी ऐसे शब्द देखे होंगे 
और उनको सबको ढूंढ-ढूंढ कर गण बना दिया कि इनसे ही मुम् व खश् हो।

और इसको देखकर एक और बात-

"डरना जरूरी है "नामक एक फिल्म है जिसमें अमिताभ वाला पार्ट आप सर्च करें, यूट्यूब पर!
 उसमें अमिताभ  एक प्रोफेसर का रोल करता है और उसके घर में एक काल्पनिक भूत का निवास है ।
एक ऐसा भूत जो वह प्रोफेसर बनना चाहता है ।
वहां अमिताभ का डायलॉग है कि - "वह भूत मैं बनना चाहता है"

शायद "आप्स्टोमिनी" कहते हैं इंग्लिश में।

आप इसमें सन्नन्त का प्रत्यय मत सोचना! क्योंकि वह सन्-प्रत्यय, तत्क्रिया करने की इच्छा रखने में होता है ।
बल्कि वह यहां पर कोई दूसरा कोई दूसरे में ही तब्दील होना चाहता है ,बनना चाहता है।

 ना कि उसकी इच्छा रखता ।
उसको प्राप्त करने की इच्छा नहीं बल्कि स्वयं ही वह बनना चाहता है एकरूपता चाहता है।
 तो आप इसमें देखिए कि थोड़ा-थोड़ा ऐसा ही है ना जैसे "भुवमात्मानं मन्यते" तो  "अमिताभम् आत्मानं मन्यते कश्चित् प्रेत:"
यहां भी खश् और मुम् होकर "अमिताभम्मन्य:" या  "आचार्यमात्मानं मन्यत इति आचार्यम्मन्य:" प्रयोग साधु होवें!

समाधान -

कोई प्रेत जो यह सोचता है कि मैं अमिताभ बन जाऊं या तद्रूप हो जाऊं , वह एक अलग अर्थ है ,
जबकि खुद को वह मानना इस अर्थ में खश् और मुम् होते हैं तो इसलिए यहां पर खश् और मुम्  होने की शंका निरापत्तिक हुई!
 हां यहां स्वयं को विष्णु होना चाहता है या विष्णु की तरह आचरण करता है - विष्णूयति, तथैव अमिताभमात्मानमिच्छति इस अर्थ में क्यप् प्रत्यय हो सकता है।
अगर उसी फिल्म को यदि और भी कुछ शास्त्रीय परिप्रेक्ष्य से देखें ,
तो फिर देखिए, वह प्रोफेसर अपने घर में ट्यूशन पढ़ने आए हुए एक छात्र को डराता है !
शास्त्रों में अपने शिष्य को डराने का बड़ा निषेध है।
 बल्कि उनका डर दूर करने का विधान है, जबकि फिल्म में दिखाया गया है , कि वह प्रोफ़ेसर खुद ही भूत से डर रहा है ,और शिष्य को आगे भेजता है कि 
वह भूत अभी रसोई  में गया है, जाकर देखो।
वैसे इसमें एक्टिंग बहुत बढ़िया है अमिताभ की।
#हिमांशु_गौड़
#हिमांशुगौड_लेख

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