Wednesday, March 11, 2020

प्रदोष काल में भगवान् शिव के पूजन का विशेष महत्व





प्रदोष काल में भगवान्  शिव के पूजन का महत्व
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प्रदोषकाले शिवमर्चयेद्य:
        क्व दुर्लभौ तस्य ह भोगमोक्षौ
शिवस्स देवेषु समेषु मुख्य:
          शूली कृपालुर्वृषभध्वजोऽज:।।
                    - डॉ. हिमांशु गौड

लौकिक कार्यों की व्यस्तता में उलझे हुए मनुष्य के लिए सौभाग्य से ही ऐसा क्षण मिलता है जब उसकी धार्मिक कार्यों में रुचि होती है ।

सौभाग्य से इसलिए , क्योंकि वह धर्म ही है जो हमें सभी प्रकार के सत्फलों की प्राप्ति करा सकता है ।
जो-जो मनुष्य इच्छा करता है , वह-वह धार्मिक अनुष्ठानों द्वारा निश्चय ही सुगम मार्ग से प्राप्त कर लेता है ।

जैसा कि हमारे सभी देवों में सर्वश्रेष्ठ, सर्वपूज्य,महादेव शिव शंकर प्रभु - जोकि अति शीघ्र प्रसन्न होते हैं , उनकी भी शास्त्रों में अनेक प्रकार के पदार्थों से अर्चना बताई जाती है,अभिषेक बताया जाता है ।

भगवान शिव के इस संसार में 2 स्वरूप दृष्टिगोचर होते हैं - एक प्रतिमा स्वरूप और दूसरा लिंग स्वरूप ।
 प्रायः शिवालयों में लिंग स्वरूप की ही पूजा-अर्चना की जाती है और उसी स्वरूप (शिवलिंग) के अभिषेक करने का ही विशेष फल भी होता है ।

 उन भगवान् का पूजन करने के लिए प्रदोष-काल अत्यंत श्रेष्ठ माना जाता है वह प्रदोष काल क्या है यहां हम थोड़ी सी चर्चा करते हैं।

सूर्यास्त से डेढ़ घंटा पहले और डेढ़ घंटा बाद तक प्रदोष काल रहता है।
 यहां यह बात समझने की है कि प्रदोष काल और प्रदोष की तिथि में अंतर है।

 प्रदोष काल तो सूर्यास्त से डेढ़ घंटा पहले और डेढ़ घंटा बाद तक रहता है, एवं प्रदोष तिथि हर महीने की शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को कहते हैं।
इन्हीं त्रयोदशी के शाम का समय शिव के पूजन के लिए सर्वोत्तम होता है ।
ऐसी जनश्रुति है कि हर महीने की त्रयोदशी के दिन भगवान् शिव प्रदोष काल में कैलाश पर्वत पर नृत्य करते हैं और उनके भक्तों उनकी स्तुति करते हैं ।

इसी को देखते हुए पृथ्वी पर भी जो कोई मनुष्य , शास्त्रों के विधि-विधान के अनुसार , भगवान् का अभिषेक दूध , दही , शहद,  घी इत्यादि द्रव्यों से करते हैं , उनको रुद्री का पाठ सुनाते हैं , उनको भी मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं। 
पुष्टि की कामना के लिए दूध से, पशु की कामना के लिए दही से, यक्ष्मा रोग का विनाश करने के लिए शहद से, एवं लक्ष्मी प्राप्ति भी शहद द्वारा ही , और संतान प्राप्ति के लिए घी से , भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है , तथा गन्ने के रस से अभिषेक करने से भी मनुष्य को लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। 
अभिषेक करते समय शिवलिंग पर निरंतर जल की धारा गिरती रहनी चाहिए।

"अक्षुण्णा विमला धारा कारयेच्च शिवोपरि।"

 हमारे भारत में माताएं बहनें अधिकतर सुख , सौभाग्य, समृद्धि , विवाह , संतान आदि के लिए प्रदोष का व्रत रखती हैं और शाम को भगवान् की पूजा करने के बाद ही अपना व्रत खोलती हैं।

अलग-अलग दिनों में यदि प्रदोष हो, तो किस तरह के फल प्राप्त होते है यह विचार करते हैं  -

1. सोमवार को जब प्रदोष हो तो वह सोम प्रदोष कहलाता है ,  यह सभी तरह के पापों का नाश करनेवाला होता है ।
2. मंगलवार का प्रदोष यदि हो तो उसे भौम प्रदोष कहते है , यह दरिद्रता दूर करनेवाला , ऋणमुक्ति हेतु, और आर्थिक उन्नति के लिये लाभदायक है।
3. बुधवार को अगर प्रदोष हो तो उसे बुध प्रदोष या सौम्य प्रदोष कहते है , संतान सुख प्राप्ति और विद्याप्राप्ति के लिये लाभदायी ।
4.  गुरुवार को यदि प्रदोष हो तो यह आध्यात्मिक उन्नती एवं पितर-दोष-शांति के लिये लाभदायक ।
5. शुक्रवार को यदि प्रदोष हो तो उसे शुक्रप्रदोष कहते है, शत्रु संबंधी बाधा विनाश के लिये लाभदायक है।
6. शनिवार को प्रदोष, अत्यंत दुर्लभ और लाभदायक होता है । शनि बाधा , साढ़ेसाती , धनप्राप्ति , ऋणमुक्ति , राज्यपद आदि के लिये लाभदायक।
7. रविवार को अगर प्रदोष हो तो उसे भानुप्रदोष कहते है । यह आरोग्य-प्राप्ति के लिये लाभदायक और परम कल्याण करने वाला होता है !

वैसे तो सातों दिनों में ही पड़ने वाला प्रदोष-व्रत बहुत कल्याणकारी है, फिर भी इन सातों प्रदोषों में सोमवार, मंगलवार और शनिवार का जो प्रदोष व्रत होता है उनका बहुत महत्व है और वे बहुत लाभकारी होते हैं।



प्रदोष काल रोज सूर्यास्त के आसपास होता है ।
इस पर्व काल में सुषुम्ना नामक नाड़ी कुछ खुल जाती है , अतः इस समय साधना और ध्यानादि करके सुषुम्ना में प्राणों को प्रवाहित करना सरल होता है !

शास्त्रों की मान्यता के अनुसार देवताओं और राक्षसों के द्वारा समुद्र-मंथन से जो हलाहल नामक ज़हर निकला था, वह भगवान् शिव ने इसी प्रदोष काल में पिया था ।



"देवा बभूवुश्च सुधां निपीय
महान् स देव: विषमेव पीत्त्वा"

 मां पार्वती ने अपनी शक्ति से उस विष को भोलेनाथ के कंठ में ही रोक दिया इसलिये शिव " नीलकंठ " नाम से विख्यात हुए ।
शंकर भगवान् ने इसी प्रदोष काल में समस्त सृष्टि को इस भयंकर ज़हर के दुष्प्रभाव से बचाया। इस कारण भी इस प्रदोष काल का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।


  प्रदोष काल में ही शंकर भगवान् ने तांडव नृत्य किया था ।
 भगवान शंभु ने खुद जहर पीकर इस ब्रह्मांड को भयंकर हलाहल के बुरे प्रभाव से बचाया।

 तब सारे के सारे देवता और राक्षस ऋषि महर्षि भगवान भोलेनाथ महादेव के चरणों में गए और उसी प्रदोष काल में उनकी स्तुतियां करने लगे।

इसीलिए प्रदोष के दिन सूर्यास्त के समय प्रदोष काल मे भगवान शिव की उपासना कर उन्हे प्रसन्न किया जा सकता है ।
इस प्रदोषकाल में पूजा करने का महान् फल बतलाया गया है।
प्रदोष का मतलब होता है जो हमें सभी दोषों से मुक्त कर दे ऐसी विशिष्ट  पुण्यमय वेला ।

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।। अत: प्रदोषे शिव एक एव
 पूज्योsथ नान्ये हरिपद्मजाद्या: 
तस्मिन महेशे विधिनेज्यमाने
 सर्वे प्रसीदन्ति सुराधिनाथा: ।।
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मतलब प्रदोष काल में सिर्फ शिव की ही पूजा करनी चाहिए ब्रह्मा विष्णु आदि देवताओं की नहीं क्योंकि सिर्फ शिव की पूजा ही सभी देवताओं की पूजा का फल प्रदान कर देती है।
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इंसान की जिंदगी मे बीमारी , कर्जे , दुश्मन , ग्रहबाधा , संकट , पूर्वजन्म के कल्मष आदि यह सब भी तो एक तरह का जहर ही हैं और इस प्रदोष के समय भगवान भोलेनाथ की पूजा यदि विधि विधान से सच्ची श्रद्धा से की जाए तो वह हमें जिंदगी के, जहरीले विषों से मुक्त कर सकते हैं और सुख संपदा हमारे जीवन में भर सकते हैं।

"पूर्वजन्मकृतं पापं चास्मिन् जन्मनि दु:खदम्। 
द्रुतं तन्नाशयेद्भक्तो श्रद्धया शिवपूजया।।"


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मैं तो साधकों से यही कहना चाहूंगा कि प्रदोष के दिन यथासंभव व्रत रख सके तो बहुत अच्छा है ।

"शिवं ध्यायंस्तदा भक्तो ह्यभुक्त्वा व्रतमाचरेत्"

और साथ ही साथ ११ या १०८ बेलपत्रों से, धतूरे से , भांग की पत्तियों से , कनेर के फूल , गुलाब के फूल आदि से भगवान शिव की पूजा अर्चना उनका शुक्ल यजुर्वेद के रुद्री पाठ से अभिषेक शुद्ध गंगाजल से उनको नहलाना इत्यादि प्रकार से और ओम नमः शिवाय के 108 जाप से उन्हें संतुष्ट करना यह सब बड़ी से बड़ी आपत्ति को भी टाल सकता है और आपकी झोली में बड़ी से बड़ी खुशी डाल सकता है।

"आपत्तिं नाशयेन्नूनं सम्पत्तीश्चैव चाश्नुते"



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शिव महिम्न स्तोत्र #शिव_ताण्डव_स्तोत्र एवं स्कंद पुराण में वर्णित प्रदोषस्तोत्र भी इस समय पढ़ना अत्यंत लाभदायक रहता है।
जो लोग संस्कृत का शुद्ध उच्चारण नहीं कर सकते, वे लोग "नमः शिवाय" का उच्चारण ही करें !


और यदि ज्यादा ही पाठ कराने की इच्छा हो तो फिर किसी योग्य ब्राह्मण से यह स्तुति-पाठ करा सकते हैं।

"ब्राह्मणै: कारयेत्पूजां शास्त्रतत्त्वविशारदै:"

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" ये वै प्रदोष समये परमेश्वरस्य 

कुर्वन्त्यनन्यमनसाङ्सघ्रिसरोजपूजाम्
नित्यं प्रवृद्धधनधान्यकलत्रपुत्रास्
सौभाग्यसम्पदधिकारस्त इहैव लोके " 
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मतलब जो लोग भगवान शिव का प्रदोष के समय एकाग्र चित्त से पूजन करते हैं, वे इस संसार में समृद्धि , धन-धान्य, पत्नी , पुत्र , सौभाग्य , समृद्धि और अधिकार को प्राप्त करते हैं , और मरने के बाद शिवलोक को जाते हैं।
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- डॉ.हिमांशु गौड
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