Tuesday, April 7, 2020

मेरी संस्कृत काव्य रचनाएं : हिमांशु गौड़



२००५-०६ में (उत्तरमध्यमा प्रथम वर्ष) मैंने एक संस्कृत गीत लिखा -

"प्राक्कालश्च हा यस्स नष्ट: कथं,
       कोऽपि नो वेत्ति वा चास्य गूढव्यथाम् "।
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इसके बाद 2007 में "रेतश्शक्तितत्त्व" पर मैंने ७-८ श्लोक लिखे थे।

फिर 2007 में ही मैंने एक महाकाली के युद्ध का वर्णन पंचचामर छंद के श्लोकों से किया था ।

और उसके बाद (२००७-८ में ही) गदर फिल्म के नल उखाड़ने वाले सीन को मैंने संस्कृत के श्लोकों (पंचचामरछंद) में पिरोया था।



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2007 में ही मैंने अपने एक मित्र को संस्कृत श्लोकात्मक पत्र लिखा था । वह मित्र भागवत कथा वाचक था , और वह पत्र शार्दूल विक्रीडित छंद में था।

२००८-९-१० , मेरा व्याकरण (भाष्य,शेखर,मनोरमा,कौण्डभट्ट), वेदांत (वेदांतसार, पंचदशी, ब्रह्मसूत्र, शांकरभाष्य) सांख्य (सांख्यकारिका,सांख्यतत्वकौमुदी) और न्यायसिद्धांतमुक्तावली का अनुमान खंड (चूंकि प्रत्यक्ष खंड मध्यमा में पढ़ चुके थे) पढ़ने-पढ़ाने में ही व्यतीत हुआ , इसलिए श्लोक बनाने से विरति हो गई थी।




उस वक्त मेरी दिनचर्या कुछ अस्त-व्यस्त सी हो गई थी , जब मुझसे इस बारे में पूछा तो मैंने
2009 में जो स्वरचित पंक्ति मैंने सबसे पहले श्रीबाबा गुरु जी को सुनायी थी वह थी -

"अस्तव्यस्तसमस्तजीवनदशा केनापि न त्यज्यते"

तब श्रीबाबा गुरु जी ने उसको पूरा श्लोक बनाकर मुझे दिया था , जो अभी फिलहाल मेरे याद नहीं।





शास्त्री द्वितीय वर्ष (B.A. second year) के बाद मेरी दिनचर्या अस्त-व्यस्त हो गई , तो बाबा गुरु जी ने मेरे विषय एक श्लोक बनाया और मेरे कमरे में उस पर्चे को फेंक कर चले गए !
जब मैंने कुछ समय बाद उस पर्चे को उठाकर देखा , उसकी यह पंक्ति ही मेरे याद है -

 मन्येऽसौ युवक: प्रमादवशतोऽ....

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 2012 में कुछ मौका मिला , तो मैंने अनेक विषयों में उस समय श्लोक लिखे थे, जोकि असावधानी और महत्त्व न जानने के कारण सब कुछ नष्ट हुए।

"श्रीओमो व्याकुलस्तत्र जापानं यास्यते मया।
औषधिभक्षणं कृत्त्वा शतश:......"

ये उसी समय का एक श्लोक अभी याद आया।

 उसके बाद मैंने डायरी बनाकर लिखना शुरू किया।

"शिरोभेदनशतकम्" मैंने सन् 2015 के मार्च में लिखा छात्रावास में रहते हुए!

दिल्ली निर्भया कांड से मन बहुत विचलित था, मन में था इस पर कुछ लिखूंगा ।

तब "बलात्कारशतकम्" मैंने सितंबर 2015 में लिखा ,कविभास्कर छात्रावास कमरा नंबर 135 में ।

उस दिन मेरे मित्र अंकुरपांडे जी का जन्मदिन था।

 "शिरोभेदनशतकम्" मैंने दो बैठकों में लिखा था ! मतलब एक बार बैठा तो 75 श्लोक , अगले दिन १:३० घंटे के लिए बैठा तो 35 श्लोक,  इस तरह से।

जब सब लोग अंकुर पांडे जी के बर्थडे में हैप्पी बर्थडे टू यू बोल रहे थे , उस समय, मैं बैठा हुआ "बलात्कारशतकम्" लिख रहा था ।

इस शतक में बलात्कार रूपी समस्या का कारण क्या है ? और निवारण क्या है ? इसके संबंध में 100 श्लोकों में विचार किया गया है ।

 ये वही दिन थे , जब मेरी नवीन तिवारी जी के साथ नयी पहचान हो चुकी थी , और हम साथ साथ ही मोटू होटल चाय पीने जाते थे ।

 फिर मैंने उसी समय ही "भाति नो भारतम्" नामक संस्कृत काव्य भी शुरू कर दिया था। जिसके उस समय ही मैंने लगातार 35 श्लोक लिखे थे ।



मेरा सबसे महत्वपूर्ण काव्य "नरवरगाथा", - यह मैंने आश्विन नवरात्र 2014 में शुरू किया था,
इसके आदिम  "छात्रकौतुककाण्ड" की शुरुआत मैंने गजरौला में एक अपने जजमान के घर बैठकर ही शुरू की , उसके बाद अपने घर आकर "भूतकाण्ड" और "प्रकृतिकाण्ड" के कुछ श्लोक लिखे !  वैदुष्यकाण्ड के कुछ श्लोक भी लिखे!
 वर्चस्वकाण्ड के कुछ श्लोक मैंने 2017 में लिखें! जब मैंने इसकी शुरुआत की तो इसमें लगभग 14 काण्ड मैंने सोचे थे , लेकिन फिर मैंने सोचा , कांड तो खुद ही बड़े बड़े होते हैं , इसलिए इनको सिर्फ 5 काण्ड में ही रखा जाए ।




इसलिए यह पांच कांड ही इसमें प्रमुख "छात्रकौतुककाण्ड" "भूतकाण्ड" "प्रकृतिकाण्ड" "वैदुष्यकाण्ड" और "वर्चस्वकाण्ड" ।
भूतकाण्ड का श्लोक देखिए -

 "प्रेतैर्यदा नरवरस्य च पीडितस्त्वं
             रात्रौ भविष्यसि पुनर्न हसिष्यसीत्थं
 आतङ्कमीदृशमहं परिदृष्टवांश्च
          काले गते बहुतिथेपि भयं न नष्टम् ।।"

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"शैवीचर्चा" "विद्वद्धर्षिकाव्यम्" "जीवनशतकम्" जैसे कई काव्यों को मैं अगस्त 2015 में बिल्कुल शुरू कर चुका था ।
 "विद्वच्छतकम्" "वीरशतकम्" और "धनिकशतकम्" लिखने का विचार मैंने जुलाई 2014 में ही बना लिया था , जबकि इन तीनों शतकों के लगभग 25-25 श्लोक भी उसी समय मैंने लिख लिए थे , जो आज भी मेरी किसी पुरानी डायरी में हैं ।

"अमिताभबच्चनशतकम्" "संस्थानशतकम्" "" ये मेरे मार्च २०१५  में लिखे हुए काव्य हैं,
अमिताभबच्चनशतकम्" में उस वक्त ३५ श्लोक और "संस्थानशतकम्" में ४० श्लोक लिख कर चुप बैठ गया था।

उसके बाद अमिताभ बच्चन शतक के 20 श्लोक और भी, मैंने सन् 2016 में लिखे थे। मतलब इस तरह से अमिताभ बच्चन शतक के 60 श्लोक ही मेरे पास अभी तक है संस्थानशतक को मैंने दोबारा उससे आगे देखा ही नहीं , अभी तक वह मेरे पुराने कागजों में अभी तक दबा पड़ा हुआ है।

हां , शिवलहरी मैंने जुलाई 2015 में लिखी थी । यह मुझे अभी याद आया,  क्यों ? क्योंकि उसी समय मैंने कृतिदेव में टाइपिंग सीखी थी , और मैं अपने लैपटॉप पर बैठा हुआ जुलाई 2015 में शिव लहरी के 19 श्लोकों की टाइपिंग कर रहा था ।

 "पातालदैव्यन्धरी" नामक काव्य ग्रन्थ की कल्पना ने मेरे दिमाग में 2013 के उत्तरार्ध में जन्म लिया ।
यही नाम था शुरुआती तौर पर मेरे इस ग्रंथ का ।
2014 के नवंबर-दिसंबर में मैंने इस ग्रंथ की शुरुआत की !
और उस समय जबकि मेरी श्लोक लिखने की क्षमता कुछ भी नहीं थी उस दौर में भी मैंने 2 दिन में ५५ श्लोक लिखे,  जोकि भुजंगप्रयात, इंद्रवज्रा , उपजाति , उपेंद्रवज्रा आदि छंदों में थे , और आज भी मेरी एक बहुत पुरानी डायरी में लिखे हुए हैं ।

2015 के नवंबर महीने में इसी (दैव्यन्धर) काव्य के दो काव्य बनाने का मेरे मन में विचार उठा।
 मैंने सोचा "पातालदैव्यन्धरी" नाम कुछ बड़ा है , इसलिए "दैव्यन्धरीकथा" गद्यकाव्य और "दैव्यन्धरं काव्यम्" पद्यात्मक , यह दो तरह से मैंने विभाग किया।


 उसके बाद 2015 में ही "नरवरप्रेतीयम्" गद्यकाव्य के चार-पांच गद्यांश भी लिखें ।

यह वही समय था जब मैं "दैव्यन्धरी-कथा" के भी 5 गद्यांश लिख चुका था !
उसके बाद इस कथा के 2-3 गद्यांश मैंने 2017 में भी लिखे थे ! ओह , मैं भूल गया था  कि दिव्यन्धर काव्य को गद्य और पद्यात्मक दो विभाग करने का विचार मेरा 2015 का नहीं , बल्कि 2014 का ही था।

 क्योंकि तभी से मैं गद्य और पद्य दोनों में दिव्यन्धर के चरित्र को लिख रहा था ।

इसकी मैं थोड़ी सी कथा आपको बताता हूं।
 दिव्यन्धर, एक ब्राह्मण ! जो कि शिव का भक्त है ! तैरने में निपुण है ! शास्त्रों का व्याख्याता है और तंत्र साधना में रत रहता है!


 वह एक बार घोर जंगल में बैठा हुआ साधना कर रहा होता है,  तभी एक यक्षिणी प्रकट होकर उसे पाताल के जंगल में फेंक देती  है । जहां उसका युद्ध होता है , एक पिशाचराज से ।

उस समय जब युद्ध हो रहा होता है। उसी जंगल से कुछ दूरी पर भगवान शिव , जो कि उस समय 14 लोकों का भ्रमण करते हुए पाताल लोक में ठहरे हुए थे । उनको यह बात पता चली ।
वे राजा बलि की नगरी की तरफ पहुंचें। वहां राजा बलि ने उनका स्वागत किया। तब दिव्यन्धर को दर्शन देकर भगवान् शिव अपने भक्ति का आशीर्वाद दिया ।

 इस तरह से यह पूर्णतया काल्पनिक कथा थी ,जो अभी भी 2015 के बाद मैंने स्थगित कर दी थी, और अभी तक स्थगित है।


2016 जनवरी में "नारीशक्तिकाव्यम्" लिखने का विचार बनाया , जिसके कुछ ही शुरुआती श्लोक लिखे थे, मेरे जीवन के किसी शोध में लग जाने के कारण वह काव्य उससे आगे नहीं बढ़ पाया। उसकी प्रस्तावना और अध्याय विभाजन आज भी मेरे पास है।

 और हां , सबसे मुख्य बात मैंने जो शतक लिखने की शुरुआत की , उसमें सबसे पहले जो मैंने नाम सोचा वह "नरवरशतकम्" था , जिसके १५ श्लोक मैंने २०१३-१४ में ही लिखे थे।

फिर जब मैं राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय भोपाल परिसर में जाकर पहली बार श्री बृजभूषण ओझा गुरु जी से मिला, तो उनको श्रीओम जी ने बताया कि ये संस्कृत काव्य लिखते हैं , तो उन्होंने कहा कुछ सुनाइए !
तो मैंने "नरवरशतकम्" के कुछ श्लोक सुनाए थे। उस समय वे क्लास में बैठे हुए आचार्य के कुछ छात्रों (छात्राओं) को पढ़ा रहे थे।
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 एक लड़का दीपक था , जो कि क्लास में मुझसे नरवर में 3 क्लास छोटा था, लेकिन बड़ा ही साहसी , अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए तत्काल युद्ध के लिए तैयार! एवं उसके अनेक ऐसे बहुत से गुण थे , जोकि एक कवि हृदय को आकर्षित कर सकते हैं । मैंने सोचा इसके ऊपर ही एक शतक लिखा जाए!
तो अगर आप कहें कि आपने कौन से दूसरे शतक का प्रारंभ किया तो मैं कहूंगा कि "नरवरशतकम्" के बाद "दीपकशतकम्" ही मेरा दूसरा शतक था , जो कि आज भी अधूरा (४० श्लोक मात्र) है।


 तो "दीपकशतकम्" 2013 का ही काव्य है जोकि मेरी फेसबुक मेमोरी में आज भी 7 साल पहले का आ जाता है। यह भी एक तरह से "लंगड़धारीपने" का व्याख्यान सा  ही करता है। 2016 सन् मेरा कैसा गया? यह आप सोच रहे होंगे ! तो बहुत प्रकार के भाव सहित, सूक्ति आदि लिखने में यह मेरा साल व्यतीत हुआ!
 और हां , एक तो भूल ही गया सन् 2014 की ही उपज है - "कलिकामकेलि:" - इसको मैंने नरवर में ही लिखना शुरू कर दिया था।

 और इसका प्रथम अध्याय 2014 में ही लिखा जा चुका था , फिर 2015 में मैंने इसके 3 अध्याय और लिखें ।

फिर पांचवा अध्याय लिखने की सोच रखा,  लिखूं या ना लिखूं? लेकिन अब सोच रहा हूं, चार ही पर्याप्त हैं! अभी इसे ऐसे ही छपवा दूंगा थोड़े दिनों में !

मतलब "कलिकामकेलि:" मेरा 2015 का काव्य है एक तरह से।

यह 2016 की जनवरी की बात है , उस समय मैं कंप्यूटर टाइपिंग, सेटिंग आदि ज्यादा अच्छी तरह नहीं जानता था।
 या यूं कहूं कि बिल्कुल कम ही जानता था , तो भी कोई हर्ज नहीं !



मैं डॉ. अखिलेश पांडे जी के पास गया! उनके गांव के पास ही एक बहुत अच्छा शिव मंदिर था उन्हें उसी शिव मंदिर की भक्ति, आराधना संबंधी कुछ श्लोक मुझसे बनवाने थे , सो मैं उसी कार्य के लिए गया था।

 और फिर बातों-बातों में ही अपने लिखे काव्यों की चर्चा होने लगी , उन्होंने कहा - "अरे गौड़ साब! आपके इतने काव्य हैं , तो आपको तो इसी साल (जनवरी २०१६ का समय था वह) साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल जाना चाहिए!"

 पर उस समय मेरा ज़रा फक्कड़ स्वभाव था! मैं किसी चीज को भी गिनता नहीं था! इसलिए पुरस्कार, सम्मेलन , संगोष्ठी , कवि सम्मेलन , आदि पर मेरा ध्यान नहीं था ज़रा भी।

हां , एक बात और ! जो लोग सोचते हैं , मैंने सिर्फ लौकिक काव्य यह लिखे हैं , भगवान के लिए नहीं , तो उनके लिए मैं बता दूं,  कि सन् 2015-16 और 17 इन सालों में, और पहले भी,  शिव भक्ति के न जाने कितने स्तोत्र लिखे हैं !
और यह नहीं है की पुराने स्रोतों की टीपा-टापी कर दी , बल्कि शिव के लिए जो अपने हार्दिक भाव हैं वे लिखे हैं । जैसे - "शिवस्य प्रभावाद्वयं सिंहराजा:", । "असम्भवं तत्कृपया विनैतत्" "त्वमेवासि शम्भो" "बिल्वपत्रा वयम्" "केवलश्शूलपाणि:" "भीतोस्मि" इत्यादि यह सब शिव के  ही लिए कविताएं हैं।




अब अगर तंत्र की बात करें , तो दैव्यन्धर काव्य मैंने लिखा ही अपनी तांत्रिक रुचि के कारण है।

यक्षिणी साधन की विधि क्या है ? उसको कैसे स्थान पर करना चाहिए? अदृश्य करण मंत्र क्या है? उड्डीश तंत्र क्या है ? आसन सिद्धि किसे कहते हैं ? जंजीर का मंत्र क्या होता है ? 14 लोकों की विशेषताएं क्या है ? यह सब बात,  जो मैंने ज्ञान हासिल किया , उसका प्रयोग इस काव्य में आपको देखने को मिलेगा।

बात करें अगर 2017 के काव्यों की, तो अभी तो मैं खुद भूल गया हूं कि मैंने उस समय क्या-क्या लिखा था , लेकिन "भावश्री" ग्रंथ की शुरूवात मैं उस समय कर चुका था,  जो कि आज पूरी भी हो चुकी है!


"चल चायपाने" नामक संस्कृत कविता जनवरी २०१७ में ही लिखी थी, जो कि "काव्यश्री:" नामक ग्रंथ में मैंने रखी है।

मण्डूकमोद: मैंने जुलाई 2015 में भोपाल कैंपस कविभास्कर छात्रावास के कक्ष संख्या में लिखा था, यह "नेमावरभ्रमणम्,"  "शिवलहरी (शिवस्तुति)" , ये भी काव्यश्री में ही निहित हैं।





 भावश्री एक पत्रकाव्यसंग्रह है । इसके नाम के संबंध में भी मेरे मन में अनेक विकल्प आए ।

सबसे पहले मैं इसका नाम सोच रहा था - "पत्रकाव्यसंग्रह" , लेकिन उसके बाद में 4 नाम मैंने डिसाइड किए 2019 में - १."भावभा:" २. "भावश्री" ३. "पत्रपात्रम्" ४. "पत्रपेटिका" !

डॉक्टर अखिलेश पांडे जी से विमर्श किया इस विषय में । उन्होंने "पत्रपात्रम्" नाम पर विचार करने को कहा ! जोकि श्रीत्र्यंबकेश्वर चैतन्य स्वामी जी से पूछा, तो उन्होंने भावश्री नाम उचित बताया । असल में मुझे भी "भावश्री:" और "भावभा:" यह दो नाम ही जंच रहे थे,  इसलिए मैंने "भावश्री:"  नाम रखना उचित समझा।

फरवरी 2020 में मेरे , भावश्री, वन्द्यश्री और काव्यश्री और पितृशतकम् - ये चार काव्य प्रकाशित हो चुके हैं।



"पितृशतकम्" मैंने २०१५ के आश्विन नवरात्र में लिखा था। जिसका जिक्र मैं पहले करना भूल गया था।


"गणेशशतकम्" मैंने मार्च 2015 के लगभग ही शुरू किया था, जिसके 15 श्लोक उसी समय लिखे थे । फिर 10 श्लोक 2017 में और 20 श्लोक सन् 2019 में । अभी तक उसमें लगभग 52 श्लोक हैं , इसी महीने उसे पूरा कर दूंगा।




"कल्पनाकारशतकम्" मैंने इसी विगत नवरात्रि (२०२० चैत्र) के प्रारंभिक तीन दिनों में लिखा है।


प्रतिपदा को ५० श्लोक , द्वितीया को ५ , और तृतीया को ५२ श्लोक लिखे, इस तरह इसमें १०७ श्लोक हैं, जो लाकडाउन खुलते ही छपवा डालूंगा।

मेरी अन्य भोपाल में रहकर की गई जो काव्य रचनाएं थी , उनका भी मैं यथाकाल प्रकाशन करवाऊंगा।

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© डॉ हिमांशु गौड़
लेखन समय और दिनांक  -०९:०० पूर्वाह्ण, ०८/०४/२०२० , गाजियाबाद।

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